कविता : ख़ुद की तलाश में हूँ
#विषय : ख़ुद की तलाश में हूँ
जाग रहा हूँ स्वप्न सजाकर।
गुम हूँ मैं घर में आकर।।
प्यास नहीं मिटती बढ़ती है।
निज आत्मा ही अब लड़ती है।।
कैसे हताश मैं हूँ?
ख़ुद की तलाश में हूँ।।
औरों को हँस समझाता हूँ।
कमियाँ भी ख़ोज़ बताता हूँ।।
चैन नहीं मन को मिलता है।
बुद्धि नहीं पर कुछ चलता है।।
कैसे प्रकाश में हूँ?
ख़ुद की तलाश में हूँ।।
कभी दंभ में भूलूँ रब को।
कभी क्रोध में भूलूँ सबको।।
काम मनुजता है भुलवाता।
लोभ मोह हँस मुझे रिझाता।।
हूँ दास पाश में हूँ।
ख़ुद की तलाश में हूँ।।
जो कुछ है मेरे अंदर है।
भावों का एक समंदर है।।
सुप्त शक्तियाँ मुझमें इतनी।
तारक-सेना मानो जितनी।।
समझूँ न काश मैं हूँ।
ख़ुद की तलाश में हूँ।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना