ख़िलाफ़ खड़े सिर कुचल दिए, इसान थोड़ी है
दोस्तों,
एक मौलिक ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,!!
ग़ज़ल
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ख़िलाफ़ खड़े सिर कुचल दिए, इंसान थोड़ी है,
सच को तुमने झूठ कहा ये तेरा इमान थोड़ी है
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ये बादशाहत, शोहरत तेरी अमर नही हाकिम,
आना जाना लगा रहेगा ये तेरा जहान थोड़ी है
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सच की राह पे दो कदम तू दिखा हमें चल के,
तेरी हुकूमत माने, इसका कोई गुमान थोड़ी है
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शब ओ रोज़ बढता जुर्म तुम्हारा रोंद रहा है ये
क्या जुर्म है बता हमे,हम सब बेईमान थोड़ी है
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जनता तुझसे सवाल करे बता तुने क्या किया,
आँख मत उठा पाक तेरा भी गिरेबान थोड़ी है
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उजड़े है घर बहुत देख हुकूमत में “जैदि” तेरी,
ग़रीब की आँख में आँसू तेरा सम्मान थोड़ी है।
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मायने:-
शब ओ रोज:- दिन और रात
पाक:-पवित्र
शायर :-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”