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23 May 2024 · 1 min read

आज़ाद ग़ज़ल

आज़ाद हो कर भी मैं ग़ुलाम हूँ।
हालात के हाथों पाया अंजाम हूँ।

ज़िन्दगी हँसाती थी अक्सर मुझे।
आज तो रोता रहता सरेआम हूँ।

यक़ीन उठ गया है हर किसी से।
अब हर सुबह को देखता शाम हूँ।

असर थी अक्सर मेरी दुआओं में।
बे-असर हो गया मैं एक जाम हूँ।

ज़िन्दगी ने छल किये मुझसे इतने।
रह गया मैं एक शख्स नाकाम हूँ।

Language: Hindi
20 Views
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