ख़ाली मन
खाली ख्याल, कैसे मचे फ़िर बवाल।
वन-उपवन,जल-थल,गृह-नभ और
कुंठित मन, जीवन, शोक और बस सवाल।।
कंपित मन, मैला जीवन, छाया अंधियारा चहुं ओर,
किसकी कहनी, कैसे सुनते, मन निकला कायल, चितचोर।।
कठिन परिश्रम, हल निकलेगा, आज नहीं तो कल निकलेगा।
जीवन-मरण भयंकर कटुता, जाना सत्य यही, नहीं बदलेगा।।
दवात उठा, दलित उठा, ग़र कर के कुछ दिखलाना है।
दीमक नहीं लकड़ी बनकर के, प्रकृति को बचाना है।।
जब स्व मध्य में इठलाये, जब क्रोध की अग्नि बढ़ जाये।
कलम उठाकर लिखना तुम, इतिहास को ऐसा गढ़ना तुम।।