ख़त लिखते रहना
ख़त लिखते रहना
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मत रुकना ख़त लिखते रहना।
स्नेह भरी नदिया बन बहना।
कलियों की कोमलता लेकर,
तितली जैसी चंचलता भर।
मदमाते महके शब्दों में,
जो मन में आए कह देना।
मत रुकना ख़त लिखते रहना।
पंखुड़ियों जैसे अधरो पर,
भँवरों सा सुरमय गान लिए।
हो कोई अनुभूति मधुर सी,
शब्दों में उसको बुन लेना।
मत रुकना ख़त लिखते रहना।
बीत चुके जीवन की अनुपम,
यादें शेष बहुत हैं मधुरिम।
एक हवा के झोंके जेसी,
फिर उनको ताजा कर लेना।
मत रुकना ख़त लिखते रहना।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)