खरगोश
खरगोश
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रविवार छुट्टी का दिन था। वैसे तो सोनू प्रतिदिन समय से विद्यालय जाता था। सिर्फ छुट्टी के दिन सोनू पतंग उड़ाता था। सोनू को पतंग उड़ाना बहुत पसन्द था। उसकी पतंग आसमान को छूने की कोशिश करती रहती थी। आज भी सोनू छत पर पतंग उड़ा रहा था। पतंग उड़ाते समय सोनू को भूख लगी। सोनू के जेब में बिस्कुट का एक पैकेट था। पास में पानी की बोतल भी रखी थी। सोनू ने पतंग रखकर छत की फर्श पर बैठकर बिस्किट का पैकेट खोला। जैसे ही सोनू बिस्किट खाने लगा। उसके पास एक खरगोश आकर बैठ गया और बिस्किट को देखकर सर हिलाने लगा। सोनू को लगा कि जैसे खरगोश उससे बिस्किट माँग रहा हो।
खरगोश को देखकर सोनू ने महसूस किया कि ये मुझसे भी ज्यादा भूखा है। सोनू ने तुरन्त एक बिस्किट खरगोश को खिलाने के लिए खरगोश की तरफ हाथ बढ़ाया। खरगोश ने जैसे ही सोनू को अपनी तरफ हाथ में बिस्किट आते देखा तो वह तुरन्त भाग गया। सोनू हैरान होकर देखता ही रह गया। खरगोश चला गया।
सोनू को यह बात समझ आयी कि शायद खरगोश डर गया है और यही कहीं गमले में रखे पौधों के पीछे छिप गया है।
सोनू ने बिना देर किये एक कटोरी में पानी, खाने-पीने की कुछ और चीजें किचन से लाकर छत पर रख दीं। उसके बाद वह नीचे चला गया। खरगोश सन्नाटा देखकर भोजन के पास आया और उसने भरपेट खाया। फिर वह अपने घर जंगल में चला गया। सोनू सब चुपके-चुपके एक झरोखे से देखता रहा।
आज उसे पतंग उड़ाने से ज्यादा आनन्द खरगोश को भोजन खिलाने में आया। जितनी खुशी खरगोश को भोजन पाने और खाने में हुई, उससे कहीं ज्यादा खुशी सोनू को खरगोश को खुश देखकर हुई। सोनू ने पक्का इरादा किया कि अब वह कभी पतंग उड़ाने में समय बर्बाद नहीं करेंगे। वह हर छुट्टी के दिनों में पतंग के पैसों से ही छत पर पानी और भोजन रखेगा, ताकि जब कभी भी खरगोश या कोई भी पक्षी आये तो सभी को भोजन प्राप्त हो सके। सोनू को आज ये समझ आया कि अच्छा कार्य करने में बहुत आनन्द है।
शिक्षा –
जीवन का सच्चा आनन्द दूसरों को सुख और प्रेम देने में है। प्रकृति में सभी समान है।
शमा परवीन
बहराइच (उत्तर प्रदेश)