खनिक
अंधेरो से जब निकली किरणें प्रकाशित हुआ जीवन सारा
वसुंधरा के कोख में जाकर खोजे प्रकाश की उज्जवल धारा
सैनिक लगे रहते है सीमा पर लिये रक्षा का भार सारा
खनिक करता खानों में अपना उद्यम सारा
तब जाकर जीवन होता जगमग हमारा
कई कई बार जीवन की आहूति देता, फिर भी रहती दुनिया मौन
शहीदों की चर्चा होती पर इनकी सुध लेता कौन
जगमग रोशन करता है जाकर घुप्प अंधेरे से
देह स्वेद की धारा निर्मल , नित लिखती कथा नया
नये-नये आयाम गढ़े कीर्तिमानों की इबारत लिखे वो
फिर भी अस्तित्व, सम्मान की लड़ाई लड़ता वो
पहचान खोजता चकाचौंध की दुनिया में वो
एक खबर हमारी हो जाती , हमें भी पहचान कुछ ऐसी मिलती
हम भी अपना उधोग बताते, खनिक कहलाकर फूले न समाते
खुशी- खुशी खनिक कहलाते, खनिक कहलाते