खत और खुतूत का जमाना
गया हुजूर ! वो खत और खुतूत का जमाना ,
हर उम्र के इंसानों का जो था दिल ए अफसाना ।
एक जज़्बात का दरिया जो एहसासों को जोड़ता था,
इंतजार किसी के खत का लगता था बड़ा सुहाना ।
गया हुजूर ! वो खत और खुतूत का जमाना ,
हर उम्र के इंसानों का जो था दिल ए अफसाना ।
एक जज़्बात का दरिया जो एहसासों को जोड़ता था,
इंतजार किसी के खत का लगता था बड़ा सुहाना ।