*खत-ए-मोहब्बत लिख रहा हूँ*
महर हो नज़र सबकी मेरी कलम पर,
खत-ए-मोहब्बत जहाँ लिख रहा हूँ|
समकेतिक हैं रिश्ते अतुल्य छबि में,
फ़रमान में बस ‘माँ’ लिख रहा हूँ||
प्रीत है क्या जिसने करके सिखाई|
ढाई अक्षर का सार लिख रहा हूँ||
ममतामय करूणा सागर गहराई|
अनगिनत अदृश उपहार लिख रहा हूँ||
दिया स्वरूप मेरा जड़ा कोई हीरा,
अनुपम अमिट दुलार लिख रहा हूँ||
मिला उपकारी नव छबि जखीरा|
हो न अदा वो आभार लिख रहा हूँ||
राँझे असंख्य हुए हीरों के किस्से,
विरले ही होत प्रेम सच लिख रहा हूँ||
रैदास भक्त गुरु प्रेमियों से किस्से,
अभिनव उद्गार स्वमत लिख रहा हूँ||
आसमां से ऊँचा कद ए मोहब्बत,
ओछी है सारी दुनिया की दौलत|
अतिशय उक्ति नहीं कोई इसमें,
‘मयंक’ महकता गुलज़ार लिख रहा हूँ||
के. आर. परमाल ‘मयंक’
स्वरचित पंक्तियां
30 /01/2021