खत्म हो गया पानी
आधुनिक बालाओं की ,
आंखों से शर्म का पानी ।
संतान की आंखों से ,
लिहाज का पानी ।
बुजुर्गों / माता पिता की ,
आंखों से रो रो कर आंसुओं का पानी ।
धरती के जल स्त्रोतों में पानी ।
सागर में भी तेल रह गया ,
नहीं बचा खारा पानी ।
और धरती की सूखी आंखें देख ,
आसमान के पास भी न बचा
रोने को जरा सा भी पानी ।
और बस उम्मीदों पर इंसानों की ,
फेरने को रह गया
ईश्वर के पास भी पानी ।