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10 Mar 2019 · 2 min read

खतरे से खाली नही

आज एक मित्र से मुलाकात हुई
दुनिया जहान की बात हुई
फिर, कहा उसने….
पहले कलम तुम्हारी उगलती आग थी,
जहाँ अक्षर बनते चिंगारी थे
जहाँ लेखनी में हरदम जलते थे शोले
बादल में बिजली होती थी, और दिमाग में गोले
तुम्हारी लेखनी मंद सी क्यो हो गयी
तुम्हारे विचार कुंद सी क्यो हो गयी

कुछ जवाब देते बना नही मुझे
विचार में उलझ,हो गयें विचारमग्न
देने थे जवाब, जवाब ना सूझे

बहुत कुछ कहता लिखता था मैं
अब चुप हूँ चुप ही रहना चाहता हूँ मैं
विचार या विचारधारा को करना प्रदर्शित
खतरे से खाली नहीं रहा अब
संवेदनाओं के ज्वार को दबाना ही होगा
अन्यथा कुचल दबा दिए जाएंगे हम
ये बोलना लिखना ढेरो को रुचता नही
अभिव्यक्ति पर उनका मालिकाना हक है
कोई और बोले उन्हें पसंद नही
इसलिए उतना ही सत्य बोलना चाहता हूँ
जिसमें हो झूठ का उचित मिलावट

अच्छाई बुराई के फेर में क्यो पड़ें
जांचना परखना पाप है
और यह कितना बड़ा पाप है, यह सबको नहीं पता,
और जिन्हें पता है, अनुभव है
छिपे इशारे शब्दों में जरूर बता सकते हैं शायद

मतदान के अधिकार और राजनीति के संकरे
तंग गलियारों से गुजरकर स्वतंत्रता की देवी
आज माफियाओं के सिरहाने बैठ गयी है स्थिरचित्त,
न्याय की देवी तो बहुत पहले से विवश है
आँखों पर गहरे काले रंग की पट्टी बांधे हुए…..

इसीलिए आपने जो सुना, संभव है वह बोला ही न गया हो
और मैं जो बोलता हूँ, उसके सुने जाने की उम्मीद बहुत कम है…

द्विअर्थी संवाद ही सही और सुरक्षित है क्योंकि
बाद में कह सकें कि मेरा तो मतलब यह था ही नहीं

भ्रम और भ्रांति फैलाते दिखते है लोग
जहर भरे सोच का करते प्रयोग
इसीलिए
सिर्फ़ इतना ही कहना है कि कुछ भी कहना
खतरे से खाली नहीं रहा अब!

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 514 Views
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