खंभों के बीच आदमी
मैंने देखा है
दो खंभे है
उन दो खंभों के बीच की
दूरी नापता हुआ आदमी
वह हर रोज़ एक खंभे से चलता है
दूसरे तक पहुंचता है
कभी कभी वह सोचता है क्या
यही है जिंदगी है
परंतु उसे यह भय सताता रहता है
कि एक तीसरा खंभा भी है
जो कि उसकी मंजिल है
तीसरे खंभे को पाने के लिए
वह क ई प्रकार के प्रयास करता है
वह उससे हमेशा डरता है
दो खंभे की दूरी तय करने से
उसे मिलता है धन
जिससे वह घर, परिवार, समाज और
देश बनाता है
परंतु तीसरे खंभे तक
आखिरकार पहुंच ही जाता है
और अब तक उसने
जो कुछ भी बनाया, बचाया
वह सब उसका नहीं रहा