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5 Apr 2022 · 1 min read

क्षुधा

दावानल से प्रखर अनल,
अजर, अमर और रहे अटल।
हर तन में सुप्त यह चिंगारी,
पशु पक्षी हो या नर नारी।

प्रदीप्तमान यह काल संग,
जाने कितने हैं इसके रंग।
धर्म, वर्ण का भेद मिटाती,
जब चिंगारी लौ बन जाती।

लपट न बुझती तूफ़ानों में,
मार्ग बना दे चट्टानों में।
वक्ष धरा की देती चीर,
फूट पड़े तब शीतल नीर।

रक्त जलाती, स्वेद बनाती,
तन दधीचि सा वज्र बनाती।
शीतोष्ण में रुके ना कदम,
बारिश में न लेने दे दम।

आज यहां, कल और कहीं
जो आज मिले, कल मिले नहीं।
हाथ में गांठें, पांव में छाले,
तब शमन को मिले निवाले।

लाख करो चाहे कोई जतन
सांसों के संग चले अगन।
असंख्य विवशता पर न पिघले
निर्ममता से कई जीवन निगले।

Language: Hindi
126 Views
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