क्षमा याचना
जहां न इज्जत राम का
वहां न जावे श्याम
अहं भोजन त्याग कर
विदुर घर खावे साग
प्रेम भाव के वशीभूत
मनमोहन घनश्याम
जाकी रही है भावना
वैसा रहे हैं परिणाम
जो समझा छोटा उनको
लिया है वामन अवतार
मान लिया जो पर ब्रम्ह
विराट रूप है भगवान
कवि विजय का है वंदना
सुन मेरे भगवान
पापी हूं मै कलिकाल का
कलियुग का इंसान
क्षमा करें अपराध मम
मैं हूं मंद गंवार
कृपा दृष्टि है आपका
हुआ जो लेखन हार
जहां न इज्जत राम का
वहां न जावे श्याम
विनित
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग