क्षण भर में मात्र
बात सदियों की करते हैं।
जिदंगी उम्र गुजर जाती हर पल में,
साँसे उखड़ जाती एक़ क्षण में,
संसार में परिवर्तन हैं
अंतिम क्षण में भी,
बिखरने से पहले
अमिट लालसा मिटती नहीं
निखर कर शिखर तक ,
परिचय है मानव – मानवी का
नकल करने में अकल खो गई है।
इसलिए तनाव हैं इतना आजकल,
क्षण भर में मात्र, युद्ध विनाश झेल रहा,
मानवीय संवेदना खो रहा है।
इतना ही नहीं घर, रिश्ता, विश्वास
क्षण भर में मात्र बिखर जाता है ,
जिससे जीवन का गहरा नाता है
वो भी बदल जाता है।
– डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार
भागलपुर, दिनांक-31-3-022मौलिक स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।