क्षणिकाए – व्यंग्य
1 इंजीनियर
वो नान वेज खूब खाता है
वेज भी उसे भा जाता है
जो मिल जाए उसे
वो जमकर खाता
2 डाक्टर
बहुत यह अन्याय हो गया
गंभीर बिमारी का उसे भान हो गया
बडे से अस्पताल की शान मे
उसके साथ पूरे गरीब परिवार का सम्मान खो गया
3 व्यापारी
सामान आना और जाना है
बस ग्राहक को लुभाना है
जहर हो या बारूद का कारोबार
जेब का पैसा गल्ले मे आना है
4 वकील
काले रंग से ढप जाय काला सच
तर्क के तराजू की तूती बजती
झिझक और लिहाज के ज्ञान से
अक्सर न्याय की कुर्सी है भटकी
5 लेखक
कल्पना की लेखनी बुन रही शब्दो का जाल
भटकती राह को संवारने का करती कमाल
बांट कर ज्ञान ओरो को अक्सर दूर रह जाता
खुद उस ज्ञान को जीवन मे उतारने का ख्याल
संदीप पांडे”शिष्य” अजमेर