क्षणिकाएं
दर्द
दर्द ने कलेजा भर दिया
तुम मरहम लेकर बैठे
मरहम भी लगा घाव पर
पर तासीर वही रही
जिन्दगी
जिंदगी रेत सी फिसली
पकडंना चाह , हाथ न लगी
पर जो खुद छोड़ चली
तब सबने पकड़ना चाहा
राजनीति
खेल कलन्दर सी है राजनीति
कभी इस तो कभी उस दल
जब बजती डुगडुगी चुनाव की
तब दिखती सही उछलकूद