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22 Jan 2021 · 1 min read

“क्रंदन”

नाश करता नशा
धूम्र का कण यहाँ,
मौत बन डस रहा
जहर भीषण यहाँ !

चिकित्सक ले रहा
सँभलकर धन यहाँ,
किन्तु वह कर रहा
जान रक्षण यहाँ !

वायु में घुल रहा
वाहनों का धुआँ,
उर्वरक कर रहा
मृदापक्षरण यहाँ!

हाय रे ! मीडिया
झूठ को सच किया,
पाप का कर रहा
रोज खण्डन यहाँ!

मौत से जूझती
जिंदगी डूबती,
प्यार का फलसफा
लोक रञ्जन यहाँ!

आदमी बढ़ रहा
फ़ासले गढ़ रहा,
कब कहाँ दीखता
आज निर्धन यहाँ!

सीढियाँ तोड़कर
योग्य को रौंदकर,
घोर प्रतिघात कर
मान -मर्दन यहाँ !

आदमी लाँघता
मानवी हद सभी,
कौन सुनता मगर
घोर क्रन्दन यहाँ !

जगदीश शर्मा सहज

Language: Hindi
2 Likes · 227 Views
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