क्यों छुप गये हो??
अक्श पानी में दिखा कर छुप गये हो।
जिन्दगी की शाम बन क्यों रुक गये हो?
चाँद मेरे तू मुझे खुद में समाले,
चाँदनी हूँ तेरी मुझको गले लगाले।
मैं रहूँ तुझमें यहीं अब लालसा है,
चाँद मेरे हाल अब बेहाल सा है।
बादलो के ओट में क्यों छुप गये हो?
जिन्दगी की शाम बन क्यो रुक गये हो?
पूर्णमासी अब बनों जीवन में मेरे,
प्रतिपदा सी बन गई हूँ बिन मै तेरे।
एक झलक मुझको दिखादे पूर्ण हो कर,
बिन तुम्हारे मर रही मै आज रो कर।
तुम अमावस के ग्रहण में छुप गये हो।
जिन्दगी की शाम बन क्यों रुक गये हो?
देख मेरा हाल अब बेहाल सा है,
जैसे सावन मेघ बिन सुखा पड़ा है।
चाँद से ही हाल तेरा पूछती हूँ,
चाँद में ही चाँद तुझको ढ़ूढती हूँ।
दामिनी के डर से ही तुम छुप गये हो।
जिन्दगी की शाम बन क्यों रुक गये हो?
आज जीवन रेत जैसा बन गया है,
ख्वाब सारे बर्फ में ही सन गया है।
बिन तुम्हारे फूल भी खुशबू रहित है,
आज मेरा जो यहाँ सबकुछ अहित है।
चाँद के पिछे कहीं तुम छुप गये हो।
जिन्दगी की शाम बन क्यों रूक गये हो?
???
✍✍पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार