क्यो बार-बार आजमाते हो
मुझे क्यों बार-बार आजमाते हों
क्या अब तक मुझे जान पाएं हों
कितने वक़्त तो गुजर गए हैं साथ तेरे
फिर क्यों ऐसा-वैसा इल्जाम मुझपे लगातें हो।।
मैंने तो एक ख्वाब देखा था साथ तेरे
जो ओ भी हकीकत से ,लगता हैं दूर हों गया हों
वक़्त तो पानी जैसा हैं,जो कभी ठहरता नहीं
फिर हालात से कैसे तुम इल्तिज़ा रखतें हों।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा, सीवान-बिहार