कब बरसोगें
पंछी की तरहा आसमान में घुम रहे हो तुम।
कब बरसोंगे आसमान से
क्यो इतना गरज रहे हो तुम।
बादल,घटा, सावन बनके छा रहे हो तुम।
जैसे हवा का झोका बनके
प्राकृति को बहला रहे हो तुम।
ठण्डी बौछारों से धरती को नहला रहे हो तुम।
अब बरसे हो कई रोज से
करके कोई बहाना बरस रहे हो तुम।
ना जाने किस उमंग में गरज रहे हो तुम।
पंछी की तरहा आसमान में घुम रहे हो तुम।
कब बरसोगे आसमन से
क्यों इतना गरज रहे हो तुम।…
अब नयी उमंग से हर जगह बरस रहे हो तुम।
* Swami ganganiya *