क्यों मोहब्बत यहां गुनाह है !
क्यों मोहब्बत यहां गुनाह है,
भावनाएं इतनी बेपरवाह है.
प्रेम में तो बसता स्वयं खुदा है,
फिर क्यों लोग इतने जुदा हैं।
राधा कृष्ण में अनुराग था,
जीवन का उत्तम राग था।
भगवान भी प्रेम खूब निभाए,
राधे कृष्ण जग में कहलाए।
उमा शिव के प्रेम में थी दिवानी,
अपने पिता की एक न मानी।
सती हो गईं हवनकुंड में जलकर,
सह न सकी अपमान की वाणी।
जब देवों को प्रेम का अधिकार है,
क्यों धारा पर इतना विकार है।
क्यों प्रेम के खिलाफ लोग खड़े हैं,
क्यों जिद पर इतना आड़े हैं।
प्रेम तो खुदा की इनायत है,
बंदगी है, ईश्वर की इबादत है।
सच्चे प्रेम के आगे झुके भगवान,
भावना का देव भी करते सम्मान।