क्यों पड़े हो सुप्त ?
उठो हो जाओ जागृत ,
क्यों पड़े हो सुप्त ?
अपने अर्जन से निर्जन में करो सृजन ,
काल – रज्जु के नर्तन का निर्भय हो करो मर्दन ,
निज में दृढ़ता ला कर
करो नया परिवर्तन ,
अर्पण कर निराशा का
वरण कर लो आशा का ,
जीवंत हो जाओ
और कर दो पाप का अंत ,
जीवन – पर्यन्त हार न मानो
फिर जय पहुंचेगी निश्चय ही
उस नील नीलाभ अनंत तक |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’