क्यों न पहले अपने आप पर लिखूं
यूं अनंत लिखने बैठा तो सोचा क्या लिखूं,
क्या किसी हसीना की अदाओं पे लिखूं, वतन पे लिखूं
या दिखी तस्वीर किसी भूखे बिलखते पे लिखूं
या मरते जवान और किसान पे लिखूं ,
या प्रेम में पड़े आशिक पर लिखूं
घर से विदा बेटी, दहेज से मरी बेटी पे लिखूं,
या नालायक बेपरवाह औलाद पर लिखूं,
या उस बलात्कारी जल्लाद पे लिखूं।
सोचता हूं की लिख दूं किसी रिश्वतखोर पर ,
फिर क्यूं ना ज़ालिम सरकार पर लिखूं
कसूरवार किसे मानू,
इस पाखंड प्रेमी संसार को,
या नेता के अभिमान को।
फिर जब ऐसी ही बात है,
हुं तो मैं भी इस खेल का हिस्सा
तो सोचता हूं” अनंत ” क्यों ना पहले आप पर लिखूं।