क्यों इतना घबराता है
क्यों इतना घबराता है
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प्रातःकाल की किरणों से
सब अन्धेरा छँट जाता है
रात की सारी कालिमा का
दंभ सभी मिट जाता है
देख मुसाफिर अनन्त कोई
रात अभी तक बनी नहीं
जीवन के अंधियारों से तू
क्यों इतना घबराता है
जीवन संदेशों को लेकर
उठा भोर का उजियारा
चलो उठो और बढ़ते जाओ
कहे समय का हरकारा
दूर बहुत है मंज़िल उसपर
कदम कदम हैं शूल बहुत
खुद पर ही बीतेगा सब कुछ
देख लिया है जग सारा
मंज़िल से पहले जो राही
कभी सफर में थका नहीं
आँधी और तूफानों में भी
जरा भी पीछे हटा नहीं
डगर पे अपनी जो भी लेकर
चला इरादे फ़ौलादी
मंज़िल तो उसने ही पाई
जो राहों में रुका नहीं
मंज़िल तो उसने ही पाई
जो राहों में रुका नहीं
सुन्दर सिंह
23.12.2016