क्यों आ गई
मैं नाकाम सा था बैठा हुआ तुम उम्मीदें जगाने क्यों आ गई
अंधेरों में था मैं सिमटा हुआ तुम उजालों से मिलाने क्यों आ गई
तुम ही कहो,मैं क्या करूं ये जिंदगी ताउम्र मुझको छलती रही
चलने को जो अब तैयार था तुम मेरी मंजिल बताने क्यों आ गई
एक कसक सी रही,उबन सी रही, कभी जिंदगी मुझको भायी नहीं
छोड़कर जब इसे जाने को हुआ तुम साथ मेरा निभाने क्यों आ गई।।