“क्यू मजबूरियां बन गई है”
ज़िन्दगी मे अब , क्यू दूरिया बढ़ गई है..
ख्वाइशें अब,क्यू मजबूरिया बन गई है.
तू, हमसफ़र है मेरा बहुत गुरुर था.
तेरे कदमो के निशा पर, आँखे बंद कर चलेंगे.
ये अनोखा, मेरा फितूर था.
हालातो ने इस कदर रुलाया है, मुझे.
मेरे दर्द को, एक बार सोच तो लेते ..
मोहब्बत अब, क्यू नफरतो से घिर गई है
ज़िन्दगी मे अब , क्यू दूरिया बढ़ गई है.
तुझसे इतनी मोहब्बत है हमें. कि, लब्जो मे कह नहीं सकते.
इतना दर्द दिया है तूने हमें.
फिर भी,तेरे बिन रह नहीं सकते. तेरे सपनो को,अपनी आँखो मे जगह दी है.
तेरी चाहत से,बेपनाह मोहब्बत कि है.
फिर भी क्यू, हर बार मेरे जज्बातों को निराशाये कुचल गई है.
ज़िन्दगी मे अब,क्यू दूरिया बढ़ गई है.
कहता है,विश्वास नहीं है मुझपे.
तू ही बता,किया सबूत दू मे अपनी मोहब्बत का.
ज़िन्दगी अपनी अंधेरों मे गुमाये बैठे है
तेरी इस झोपड़ी को भी महल बनाये बैठे है..
फिर भी मेरी वफ़ा अब, तेरी बेवफाई से डर गई है.
ज़िन्दगी मे अब,क्यू दूरिया बढ़ गई है.
ख्वाइशें अब,क्यू मजबूरिया बन गई है.
ज़िन्दगी मे अब,क्यू दूरिया बढ़ गई है.