क्यूँ
हर दिल में झंझावात और
तूफान क्यूँ।
सन्नाटे में हर दरो दीवार व
मकान क्यूँ।
बेबस ,लाचार ,भयभीत हर
इंसान क्यूँ।
अपनों के लिए अपना ही
हुआ अछूत क्यूँ।
सुहागिन अंत समय ले जाती
सूनी माँग क्यूँ।
झूलते थे जिन कंधों पर
बचपन में आज क्यूँ।
वो कंधे बिन कांधे जाने को
मजबूर क्यूँ।
जिनकी वजह से थी बूढ़ी
आंखों में चमक क्यूँ।
उन्हें वह बेवजह बेसहारा
कर जाते क्यूँ।
हर तरफ चीत्कार आंसुओ
का सैलाब क्यूँ।
वहशी कर रहे जीवन से
बाजीगरी क्यूँ।
सकारात्मक हो कर लोग
नकारात्मक हो रहे क्यूँ।
नकारात्मक हो आशा से
सकारात्मक हो रहे क्यूँ।
प्रभु संसार में उलटबांसी
यह चल रही क्यूँ ।
अब कौन सा मंजर देखना
बाकी है ,
हे प्रभु क्या कोई प्रलय
आने वाली है ।
प्रतिलिपि अधिकार
कंचन प्रजापति