— क्यूँ न करूँ तेरी बंदगी —-
ले आया सब को तू दाता
फिर से एक नए साल में
क्यूँ न करूँ तेरी बंदगी
कभी छोड़ा नहीं बीच मझधार में !!
साथ तेरा रहता है अगर
तो घबराता नहीं किसी काम से
ऐसे ही हाथ पकड़ के रखना
जब तक सांस है इस मॉस में !!
सुबह से लेकर शाम तक
शाम से लेकर रात तक
हर सांस में रहे तेरा ही नाम
तेरे बिना वर्ण हम फिर किस काम के !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ