क्यूँ देखे तू चँदा
क्यूँ देखे तू चँदा
ग़ज़ल
क्यूँ देखे तू चँदा, खुद चेहरा तेरा चाँद सा,
क्यूँ देखूँ मैं चँदा, जब प्यारा मेरा चाँद सा।
चाहत होगा चकोर का, क्या होगा भोर का,
क्यूँ इंतजार करना, ये मुखड़ा तेरा चाँद सा।
प्यार है संस्कार है, प्रियतम का इंतजार है,
करवा चौथ पे मनुहार, कैसा तेरा चाँद सा।
निकल आओ चाँद, मामला है जज़्बात का,
चंद्रदर्शन को व्याकुल, चेहरा तेरा चाँद सा।
पुलकित धरती ‘प्रियम’ ,देख शबाब रात का,
एक चाँद को देखने, खिला चेहरा चाँद सा।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड