क्यूँ ऐसी हूँ ———
क्यूँ ऐसी हूँ ——–
*
उफ्फ: थक गई
सबका मन रखते रखते।
खुद को भी भूल गई
सबको खुश करते करते।
*
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ
ठौर भी तो यहीं है।
छोड़ूं तो छोड़ूं किसे
अपने भी तो यही हैं।
*
पर घुटता है दम मेरा,
समझेगा कौन इसे ?
छटपटाता है मन मेरा,
मानेगा कौन इसे ?
*
माना कि परिवार मेरा है
बच्चे भी मेरे ही हैं।
माना इसी में संसार मेरा है
पर क्या जीवन मेरे नहीं हैं ?
*
बदहवास सी लगती मैं ।
बस आभास सी लगती मैं ।
*
मुझे खुद के लिए भी
अब जीना होगा ।
समय अपने लिए भी
कुछ बचाना होगा ।
*
जीती जागती इंसान हूँ
क्यों बनी मैं बेजान हूँ ?
नारी हूँ, अभिमान हूँ
नारी के अस्तित्व की पहचान हूँ।
*
जब देती खुशी सबको मैं
तो खुद खुशी की मोहताज क्यूँ रहूँ ?
अपनी मौजूदगी बतलाऊँ मैं
यूं घुटी हुई आवाज क्यूँ रहूँ ?
@पूनम झा। कोटा, राजस्थान
#####################