क्यूँकि हम बेटियाँ हैं
रचनाकार-किरणमिश्रा
विधा-कविता
“क्यूँकि हम बेटियाँ हैं”
महकाऊंगी कोख तुम्हारी,
बोवोगे गर बेटियाँ!
बंजर हो जायेगी सारी दुनिया,
मारोगे गर बेटियाँ !!
अमूल्य निधि हूँ,मुझको पहचानो
दोनों कुल की आन हूँ !
महापाप है गर्भ में हत्या,
माँ मैं भी तेरी सन्तान हूँ!!
बालिका-वधू मुझे बनाके,
जीवन ना बनाओ,अभिशाप मेरा!
मुझे पढ़ाओ,मुझे लिखाओ,
छूने दो आसमान तुम!!
भइयाजी की आन बनूँगी,
मम्मीपापा तुम्हारी जान मैं!
पढ़लिखकर सूरज सी चमकूँगी,
मैं भी विश्व पटल पर शान से!!
गुड़िया बन कर खेलूँगी
माँ तुम्हारी छाँव में!
चिड़ियाँ बन के उड़ जाऊँगी
सासू जी के गाँव में!!
पिता हिमालय की गंगा बन,
सींचूँगी ससुराल को !
सासससुर और जेठ-ननद
रिश्तों की भरमार को!!
जीवन साथी साथ निभाना,
वेदों के उच्चार से!
जीवन ज्योति सदा उजागर
हम दोनों के प्यार से!!
सुन्दर बगिया महकायेंगें,
नन्हें फूलों की मुस्कान से !
दिगदिगन्त तक लहरायेंगें,
दोनों कुल की शान को !!””
“एक आग्रह हमें भी जीने दो “क्यूँकि हम बेटियाँ है”