क्या..
क्या…
ये कलम अचानक रुक गयी
क्या चेतना डाल झुक गयी
कल थे अपने आज छूट गए
क्या विश्वास के तार टूट गए
प्रेम पराग का प्याला ख़ाली
क्या बगिया है बिन माली
बिखर गया मनकों सा मन
क्या गुँथेगी माला चुन चुन
जो होना था सब बीत गया
क्या नेह का घट रीत गया
संतप्त मन चाहे कोई अपना
क्या अपना रह गया सपना
रेखांकन।रेखा