क्या ख़बर है ये ज़िन्दगी कब तक
क्या ख़बर है ये ज़िन्दगी कब तक
क्या मिलेगी भला ख़ुशी कब तक
दूरियाँ इस क़दर समुन्दर से
यूँ ही बहती रहे नदी कब तक
पास आने का सिर्फ़ वादा है
कर रहे इंतज़ार भी कब तक
इक सदी बाद मिलने आयेंगे
जाएगी ये गुज़र सदी कब तक
जिस गली यार का बसेरा है
ढूँढ़ पाओगे वो गली कब तक
ये अंधेरा भी रोज़ डसता है
आएगी घर में रौशनी कब तक
इसमें ‘आनन्द’ है मज़ा लेकिन
यूँ रहेगी ये बेख़ुदी कब तक
– डॉ आनन्द किशोर