क्या हो तुम?
मेरी खामोशियों का अनकहा सा अल्फाज़ हो तुम,
बिन छुये महसूस जो कर लूं हां वही एहसास हो तुम।
बेनूर सी मेरी दुनिया का रौनकें महफ़िल की आगाज़ हो तुम,
आसमां को भर लूं मुट्ठी में हौसलों से भरी परवाज़ हो तुम।
सदियों से तरसती, तड़पती निगाहों का इंतजार हो तुम,
एक झलक देखकर जो मिल जाए दिल को वो क़रार हो तुम।
क्या कहूं कि क्या-क्या हो तुम,
क्या इतना कहना काफी नहीं,
मेरे लिए खुशियों से भरी दुनिया हो तुम, मेरे जीने
की वज़ह हो तुम,रब से जैसे मांगी हुई दुआं हो तुम।