क्या हर्ज़ है?
सुनने वाले का मन खुश हो जाए,
कहने वाले का कुछ भी ना जाए।
फिर तारीफ़ें करने में क्या हर्ज़ है?
औरों को खुशियाँ देना तो फ़र्ज़ है।
अनुभव कहने से मन हल्का होता,
सुनने वाले का मन उजला होता।
फिर सच्चाई कहने में क्या हर्ज़ है?
औरों को मार्ग दिखाना तो फ़र्ज़ है।
मन में कितना प्यार दबाए बैठे,
क्यों हो इसको यार छिपाए बैठे।
कहके बढ़ता कहने में क्या हर्ज़ है?
मिलके रहना तो हम सबका फ़र्ज़ है।
अनपढ़ शिक्षित है संस्कार रखे तो,
शिक्षित अनपढ़ दुर्व्यवहार रखे तो,
फिर संस्कारी बनने में क्या हर्ज़ है?
अच्छा रहना सच्चा कहना फ़र्ज़ है।
आर.एस.प्रीतम