क्या संग मेरे आओगे ?
सुनो मेरी राह में
बहुत गिरि कानन खड़े है,
ऐसी दुर्गम राहों में,
क्या साथ तुम चल पाओगे?
क्या संग मेरे आओगे?
वेदना से तप्त हो
मन ये मरूभूमि हुआ है,
तप रही इस मन मही पर
क्या मेघ बनकर छाओगे?
क्या संग मेरे आओगे?
सौन्दर्य कुछ है न यहां
है दूर तक नीरव घना
बस प्रेम ही है पास में
क्या तृप्त तुम हो पाओगे?
क्या संग मेरे आओगे?
देह का प्रतिदान तो मैं
सभ्यता को कर चुकी हूं
मन में दुबका शून्य जो
क्या अंक तुम दे पाओगे?
क्या संग मेरे आओगे ?
सोंच लो तब ही तुम आना
आके फिर वापस न जाना।
बस यही एक शर्त है,
क्या मान तुम रख पाओगे?
क्या संग मेरे आओगे?