क्या लिखूं
सब लिख रहे हैं…
सोचा मै भी लिखूं,
पर समझ नहीं आ रहा
क्या और किस पर लिखूं ???
क्या लिखूं उस देश पर ?
जिसने पूरे विश्व को
डाल दिया है खतरे में….
हर देश को खड़ा कर
दिया है कटघरे में………
या लिख डालूं
उस देश के खान पान पर
उनके रहने के अंदाज़ पर….
लेकिन वो तो सदियों से
यही सब खा रहे
ऐसे ही तो रह रहे….
फिर ये सब अब क्यों ???
तो लिखूं क्या उस विषाणु पर ?
जो छुप कर वार कर रहा
लाखों लोगों के प्राण हर रहा…
पर हम तो इक्कसवीं सदी में हैं
अणु, परमाणु बम हमारी मुट्ठी में हैं…
चांद मंगल पर अपनी धाक है
फिर भी सब इससे डर रहे
लगता ये तो एक मजाक है…
तो क्या फिर लिखूं मैं
इस साफ आसमान पर ,
या लिख डालूं कुछ
उन साफ पानी में उछलती मछलियों पर….
शायद लिखना होगा मुझे खुद पर
मैं ही तो हूं जिसकी
भूख हर पल बढ़ रही
जंगल काट खाए, नदियां पी ली
पहाड़ों को भी खा रहा
आधुनिकता की दौड़ में हूं बस भाग रहा…..
मुझे ही अब थोड़ा थमना होगा
अपनी भूख को ज़रा सा कम करना होगा…
मैं ही नहीं और भी हैं यहां
बस इतना सा समझना होगा ।।
सीमा कटोच
03/04/2020