क्या लिखूं ?
क्या लिखूं ?
यही प्रश्न है यक्ष अभी
जो भी आता है जी में
चला जाता है पल में
फिर भी
इंसान को भागते जाना है
कहाँ जाना है ?
ये कोई नहीं जानता है
अभी बस भीड़ के पीछे पीछे
चलते जा रहा है !
ऐ मानव !
क़द्र भी करले अभी उनकी
जो खड़े है तेरे खातिर
नहीं तो एक वक़्त वो भी आएगा
जब तू अपनों के सायो को तरसेगा
चलो, यही लिखती हूँ आज
जो सच है
जब ये लोग जा चुके होंगे ,
दुनिया वाले मुँह फेर चुके होंगे
और
तू मृत्यु सैया पर अकेले
तू सोचेगा की क्या लिखू ?
और
यही कविता शायद तू लिखेगा
अपने बच्चो को ज़िन्दगी का पथ दिखाने !
©️ रचना ‘मोहिनी’