“श्रृंगारिका”
एक सुहागन के संग रहते हो,
प्रिय तुम श्रृंगार बनके।
माथे की बिन्दी कहती है ,
माथे को अनमोल किया।
दूर होके भी देते हो,
विन्दी में आभास पिया।
नयनों का कजरा कहता है ,
नैनों को अनमोल किया ।
दूर होके भी नयनों से ,
देते हो आभास पिया।
बालों का गजरा कहता है ,
केशों को अनमोल किया।
जब भी महके गजरा होता है
आभास पिया।
हाथों की चूड़ियाँ कहती है
हाथोँ को अनमोल किया ।
जब जब खनके चूड़ियाँ ,
होता है आभास पिया।
पैरोँ की पायल कहती है ,
पैरोँ को अनमोल किया।
जब जब छनके पायल,
होता है आभास पिया ।
मांग का सिन्दूर कहता है,
जीवन को अनमोल किया।
जब भरती हूँ मांग पिया,
तेरे होने का प्रमाण पिया।
लाल रंग का जोड़ा कहता,
रंग गई तेरे रंगों में,
मैं हूँ तेरी श्रंगार पिया,
मैं हूँ तेरी श्रंगार पिया ।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️