क्या लिखूँ मैं
क्या लिखूँ मैं?
हाँ, मेरा पहला सवाल खुद से था
आज सोचा चलो उठा ही लूँ कलम
फिर वही सवाल सामने आया
क्या लिखूँ मैं?
हर बार यही सोच सोच कर मैं
रुक जाती!
सोचा ये लिखूँ, फिर सोचा नहीं वो लिखूँ
ऐसा क्या ही लिखूँ जो सही लगे
किसी के दुखते नस पे कलम ना चल जाए
उठ तो चुके है मेरे कलम
पर फिर सोचा क्या लिखूँ मैं!
कहीं हो रहा हैं भ्रष्टाचार
कही मचा हैं हाहाकार
कही कोई भूख से तड़पे
कहीं मची हैं लूट खसोट
आखिरकार क्या लिखूँ मैं?