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25 Dec 2024 · 1 min read

क्या मुकद्दर को दोष दें, जिसे हमने देखा ही नहीं।

क्या मुकद्दर को दोष दें, जिसे हमने देखा ही नहीं।
अक्सर बुरे वक्त में, लकीरें हाथ की, मूहँ मोड़ लेती हैं।
जब अंधेरा जीवन में हो, परछाई भी साथ छोड़ देती है।
हमें तड़पता देख, हमारी रूह भी, दामन सिकोड़ लेती है।

श्याम सांवरा…..

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