“क्या मझदार क्या किनारा”
“क्या मझदार क्या किनारा”
क्या मझधार क्या किनारा,
यकीं कर खुद पर दूजा न सहारा,
डूबती है कोई कश्ती तब ही,
जब – जब इंसान हिम्मत हारा।
“क्या मझदार क्या किनारा”
क्या मझधार क्या किनारा,
यकीं कर खुद पर दूजा न सहारा,
डूबती है कोई कश्ती तब ही,
जब – जब इंसान हिम्मत हारा।