क्या पत्थर में ही केवल ईश्वर रहता है?
ओ देवालय के शंख, घण्टियों तुम तो बहुत पास रहते हो,
सच बतलाना क्या पत्थर में ही केवल ईश्वर रहता है?
मुझे मिली अधिकांश
प्रार्थनाएँ चीखों सँग सीढ़ी पर ही।
अनगिन बार
थूकती थीं वे हम सबकी इस पीढ़ी पर ही।
ओ देवालय के पावन दीपक तुम तो बहुत ताप सहते हो,
पता लगाना क्या वह ईश्वर भी इतनी मुश्किल सहता है?
भजन उपेक्षित
हो भी जाएं फिर भी रोज सुने जाएंगे।
लेकिन चीखें
सुनने वाला ध्यान कहाँ से हम लाएंगे?
ओ देवालय के पूज्य पुजारी तुम तन मन से सेवा करते हो!
सच बतलाना मिथ्य न कहना क्यों तुम भी परेशान रहते हो।
ओ देवालय के सुमन सुना है ईश्वर को पत्थर कहते हो!
लेकिन “दीप” न जाने क्यों दुनिया को पत्थर कहता है?
…..जारी
– Kuldeep Mishra (KD)