“वक्त की औकात”
जैसी करनी वैसी भरनी ,
वक्त की बड़ी औकात है।
कभी सोचती हूँ वक्त को रोक लुँ,
वक्त और तेज भागता है।
कभी सोचती हूं धारा को रोक दूँ,
फिर एक लहर आती है।
कभी सोचती लकीरों को बदल दूँ,
वक्त पलट जाता है।
मैं सोचती रह जाती हूँ ,
वक्त निकल जाता है।
कभी सोचती हूँ खुशियों में,
वक्त का स्वागत कर दूं।
वक्त टिकता हीं नही,
मैं देखती रह जाती हूं।
बड़ी सिद्दत से वक्त को चाह्ते हैं,
पर वक्त पलट जाता है।
कभी सोचते हैं वक्त को पकड़ ले,
वक्त रेत सा फिसल जाता है।
वक्त की औकात बड़ी ,
वक्त वक्त को दिखा देता है।
वक्त इतना ब्यस्त है,
हम प्रतीक्षा में ही रहते हैं।
वक्त को कुछ भी कहो,
वक्त अपने मन से ही चलता है।
वक्त वश में नही ,
बेबस हम हो जाते हैं।
वक्त किसी का नही होता,
कोई भी हो हार जाता है।
वक्त की चोट भारी होती है,
कितनो को लाचार बना देती है।
कितने पैसे रख लो पास में,
वक्त दो कौड़ी का बना देती है।
वक्त से नही कोई जीत सकता,
वक्त ताकत वालों को औकात दिखा देती है।
वक्त को कहते हैं आराम कर लो,
वक्त थकता ही नही।
घमंड किस बात का,
वक्त के हाथों में बिके हो।
वक्त ही अमीर बना देता है,
वक्त फकीर भी बना देता है।
वक्त की कीमत करो तो,
वक्त बेमिशाल बना देता हैं।
वक्त के आगे किसी की नही चलनी,
जैसी करनी वैसी भरनी।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️