क्या देखा
उसने पूछा तूने मुझमें क्या देखा
क्या अपनी तरह मुझे ग़मज़दा देखा
सुर्ख़ लबों की देखीं कुछ मुस्कुराहट
ज़र्द आंखों में अश्क़ का कारवां देखा
शख्सियत की देखीं कई बारीकियां
सुकून का बाग़ एक गुलसितां देखा
न होता कहीं तो फिर कहीं नहीं होता
हर शय में मुस्कुराता हुआ ख़ुदा देखा
मैंने देखी सब रहमतें ही रहमतें अजय
कहाँ मैंने उसका कोई ज़लज़ला देखा
अजय मिश्र