क्या दिन वही ठीक थे परतन्त्र भारत के
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के
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देख कर यह हालात स्वतंत्र भारत के,
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के।
फिरंगियों ने तो लूटा था हमें हिसाब से,
अपने ही अब रहें लूटते बेहिसाब से,
सपने खाक कर दिए स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के।
जातिवाद का जहर घोलते सियासतदार,
संस्कृति,संस्कार,इंसानियत बे असरदार,
क्या ये स्वप्न संजोये थे स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वही ठीक थे स्वतंत्र भारत के।
मानवता बिकती सियासती गलियारों में,
लोकतांत्रिक व्यवस्था घिरी हथियारों में,
प्रजातांत्रिक ढाँचे गिरते स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के।
धर्मों की गिरफ्त में गिरफ्तार मानवता,
कोई किसी के वजूद को न पहचानता,
भगवान सहारे हालात स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वहीं ठीक थे परतंत्र भारत के।
समझौतों, सौदों से चल रहे हैं गठबंधन,
जिसकी लाठी उसकी भैंस है लठबंधन,
बद से बदत्तर दिन हैं स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के।
नहीं पूरे हुए अब तक किए वादे पुराने,
रोते हैं स्वर्ग में बैठे आजादी के दीवाने,
राम भरोसे छोड़े दिन स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के।
कौन सुरक्षित है दशहत भरे माहौल में,
प्रतिनिधि ही रहें लूटते सरेआम टोल में,
बिकने लगे अब इंसान स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के।
मनसीरत क्या तीर चढ़ेंगे कभी कमान,
पूर्ण होंगे कभी शहीदों के देखे अरमान,
स्वर्णिम दिवस आएंगे स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के।
देख कर यह हालात स्वतंत्र भारत के।
क्या दिन वही ठीक थे परतंत्र भारत के।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)