क्या जरूरत है सज के आने की !
क्या जरूरत है सज के आने की,
नज़र लग जाए न ज़माने की !
बात करता वो मेरे सामने आखिर क्या क्या,
जिद तो थी राज को छुपाने की
इतना आसान नहीं होता है कुछ कर पाना,
ज़िंदगी जंग है ज़माने की
कौन कहता है उसे मेरा पता याद नहीं
ज़िद है लकिन वो ही मनाने की
जितनी हद है वहां तक तो वो जायेगा ही
सरहदें होती नहीं उड़ानों की
मुमकिन नहीं वो लम्हे कभी लौट के आएं
बात पूछो न इन टूटे हुए मकानों की
क्या जरूरत है सज के आने की
नज़र लग जाये न ज़माने की !