क्या कहते हो हमसे।
क्या कहते हो हमसे तुमको मुहब्बत नहीं।
झूठ बोलते हो कि बंद आंखों में मेरी सूरत नहीं।।1।।
खूब जानता हूं मैं तुम्हारी शैतानियों को।
हमारे अलावा तुम्हें किसी की भी जरूरत नहीं।।2।।
जिस्म ओ जां के तुम मालिक हो हमारे।
तुम्हारे अलावा यूं दिल मे किसी की मूरत नही।।3।।
बेखौफ बोलना तुम कौन आएगा सामने।
रोके तुम्हें अभी दुनियां में इतनी भी जुर्रत नहीं।।4।।
तुझमें ताकत है शेरे अली की पहचान तू।
आये जो जंगे मैदान किसी में ऐसी कूवत नही।।5।।
जमूहुरियत का अब हो गया सारा जहां।
अब जालिमों की होती कही भी हुकूमत नही।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ