‘क्या कहता है दिल’
कविता – ‘क्या कहता है दिल’
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कुछ करने-कहने से पहले,
खुद से आकर मिल।
सुनो समझलो अंतर्मन को,
क्या कहता है दिल॥
हम जो भी कहते हैं किसी को,
हो मीठा और मनोहारी।
कर्म करें हम ऐसा हरदम,
जो होवे नित हितकारी॥
कभी भूलकर भी मत करना,
जो होवे बोझिल।
सुनो समझलो अंतर्मन को,
क्या कहता है दिल॥१॥
कुछ न कुछ तो सब करते हैं,
बिना किए रहता है कौन।
वाणी है तो बात भी करता,
हरदम न रहता कोई मौन॥
इतना सरल बना लो ख़ुद को,
न होवे मुश्किल॥
सुनो समझलो अंतर्मन को,
क्या कहता है दिल॥२॥
जैसा ख़ुद के लिए चाहते,
औरों से व्यवहार करो।
हो जाए गर भूल, भूल से,
बिना झिझक स्वीकार करो॥
‘अंकुर’ खुद को बना लीजिए,
सादा और सरल।
सुनो समझलो अंतर्मन को,
क्या कहता है दिल॥३॥
– ✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश